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न्याय -अन्याय !

युवामंच
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आदरणीय मित्रों ,…..सादर प्रणाम !

हमारे आदरणीय उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठ विद्वान् न्यायाधीशों ने .. माननीय मुख्य न्यायाधीश का विरोध करते हुए एक पत्रकार सभा की ,………भारतीय इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है ,………वैसे संसार में सबकुछ कभी न कभी पहली बार होता है ,…. फिलहाल ….इस मामले से सभी अचंभित अवश्य हैं !……..कुछ आहत विद्वानजनों ने इनकी मंद मुखर आलोचना की है ,…….कुछ ने अत्यंत साहसिक कदम बताते हुए प्रशंसा भी की है !……..हमारे आदरणीय न्यायाधीशों ने मुख्यतः भारतीय जनता को संबोधित किया है ,…..लेकिन क्या हम  आम मूर्ख जनता के पास आपकी समस्याओं का समाधान हो सकता है ?……..सच सब जानते हैं लेकिन ठोस अहंकारी भावना हमको नीच बनाती है !…………किसी दृष्टिकोण से आपने आगामी बीस वर्षों की अपनी पटकथा लिख ली है !………हम अपने आदरणीय न्यायाधीशों से कहना चाहते हैं कि ,..आपके शब्द आत्मा के नहीं हो सकते हैं ,…आत्मा हमसे अभी दूर है ,….आत्मा से ही सम्पूर्ण सत्य जाना जा सकता है ,..यद्यपि …..हम मूर्ख अनात्मवेत्ता भी घोषणा करते हैं कि भारत में लोकतंत्र की विफलता संभव ही नहीं है !………भारतीय राजा महराजा भी एक लोकतांत्रिक व्यवस्था मर्यादा का पालन करते थे ,……अब हम राजकीय विषयों में कुछ उन्नत अवश्य हुए हैं ,….कभी यह उन्नति अकल्पनीय थी !…सबके सब हृष्टपुष्ट मस्त-मौला चिंतामुक्त धर्मयुक्त आनंदित सम्मानित जीवन जीते थे ,…….हममें पनपे हमारे नीच अहंकारों ने हमें नीचे गिराया है !………तकनीकी उन्नति ने मात्र हमारा तौर तरीका बदला है !………बहरहाल आधुनिक भारतीय लोकतंत्र पर्याप्त मजबूत है !……. अनिवार्य परिस्थिति में हमें विशेष काल अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है !…..

लाखों करोड़ों वर्षों से हमारी यात्रा चलती आ रही है ,……..पहले राजा भगवान् स्वरुप और प्रजा भक्त स्वरुप होती थी !………राजा की प्रत्येक बात प्रजा के लिए शिरोधार्य होती थी ,…..प्रजा का प्रत्येक कष्ट राजा का होता था ,….लेकिन तब भी अहंकारों के चलते तमाम अत्याचारी तानाशाह भी पैदा होते थे !……..सौभाग्य से हम सबका यथासंभव निवारण करते आये हैं !…………..तब सम्पूर्ण प्रजा का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व राजा पर होता था !…..एक बात भारतीय मूल में स्पष्ट है कि हम गलत किसी का चाहते ही नहीं ,…लेकिन यदि सही करने में किसी को कष्ट हो तो उसके हम जिम्मेदार भी नहीं हैं !……… …….भारतीय लोकतंत्र ने भारत को निःस्वार्थ मोदीजी जैसा पूज्य परिश्रमी पुरुषार्थी तपस्वी संत प्रधानसेवक दिया है ,………पूज्यनीय महामहिम रामनाथ कोविंद जी हमारे ज्ञानी राष्ट्रपति हैं !………..जनसामान्य के सामने ऊँगली उठाने से पहले …शायद अधिक अच्छा होता यदि हमारे सम्मानित न्यायाधीश सार्वजनिक बयानबाजी से पहले परम आदरणीय राष्ट्रपति महोदय से मिलते !….खैर …. जो हो चुका हो कभी कभी उसे ही अच्छा मान लेना चाहिए !………

आप न्यायाधीशों का मुद्दा मामलों के आवंटन से जुड़ा है ,…….माननीय मुख्य न्यायाधीश ने बयान जारी कर सबकुछ सामान्य प्रक्रिया के आधीन बताया है ,……यहाँ जनता का प्रश्न है कि क्या न्यायपालिका में बहुतायत काली भेड़ें हैं ?…….क्या मुख्य न्यायाधीश का कोई मुख्य अधिकार नहीं है ?……क्या मुख्य या सामान्य न्यायाधीश अपने विशेष स्वतंत्र अधिकार का अनुचित अतिक्रमण करते हैं ?….क्या कोई तटस्थ न्यायाधीश स्वयं अपने मामलों की इच्छा रूचि या निर्धारण कर सकता है ,…..और ……उच्च न्यायाधीशों का चुनाव कौन कैसे करता है ?……..न्यायाधीशों का चयन किसी गुप्त कोलोजियम प्रणाली द्वारा क्यों होता है ?………और क्या न्यायाधीशों में भी पालतू पक्षकारिता है ?……..न्यायाधीश श्री चेलेश्वरम जी वामपंथी नेता डी राजा से क्यों अनौपचारिक गर्मजोशी दिखाते हैं !……..और कोई न्यायाधीश न्यायपालिका में व्याप्त भयंकर भ्रष्टाचार भाई भतीजावाद पर प्रश्न क्यों नहीं उठाता है ?……….मानवता को यह ध्यान रखना होगा कि न्याय क्षमता प्रत्येक मानव में विद्यमान है !…..हमारा अहंकार मात्र हमको अँधा झूठा अन्यायी बनाता है !…………..क्या श्रेष्ठ सरकार के भ्रष्टाचार विरोधी कारगर अभियानों से न्यायाधीशों के ख़ास लबालब तबके में बहुत बेचैनी है ?……..यदि है तो यह सबके लिए अत्यंत गलत है !!……….यदि नहीं है तो भी गलत है !!……..अहंकार सबसे गलत है ,….स्वच्छ राष्ट्रीय भावना सर्वोपरि है !……. …..इसीलिए महामानव मोदीजी हम जैसे अहंकारी मलिन मूर्खों के भी पूज्य हैं !……..वो ज्ञानियों में परमपूज्य हैं !…….वो भारत के अनमोल रत्न हैं ,……सबका साथ सबका विकास उनका महानतम लक्ष्य है ,…..मानवता के उत्तम विधिक विकास में अनुचित अवरोधों को मिटना होगा !…

आज सुबह चाय की दुकान पर अखबार की मुख्य पंक्ति पढ़कर कानून व्यवस्था से जुड़े अज्ञात व्यक्ति की टिप्पड़ी हमारे लिए उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी उच्चतम न्यायलय के क्षुब्ध न्यायाधीशों की !….. उस अज्ञात सुरक्षाकर्मी ने बेसाख्ता कहा कि .. “सबसे बड़े डकैत ये जज हैं !…..पांच लाख देकर किसी अपराधी को भी बचाया जा सकता है ,….. देकर किसी बेक़सूर को भी फंसाया जा सकता है !..”………कुछ दिन पहले हमने देखा था कि सीबीआई की विशेष अदालत ने माननीय उच्चतम न्यायालय के लगभग खिलाफ जाकर घोटालेबाज ए राजा को बरी किया था !……उस सिद्ध मामले के सबूत स्वाहा किये करवाए गए थे ,…..देश यह जानता है कि तब सीबीआई भ्रष्टाचार की रक्षक पालतू तोता थी !.,…वह अत्यंत स्पष्ट गंभीर लूट का मामला था ,….स्थापित नियमों को मनमाफिक बदलकर मुफ्त मलाई बांटी चाटी गयी थी ,……….उस दौर की न्यायिक कार्यशैली आपको सादर सम्मानीय बनाती है ,……आदर्श सोसाईटी में अपने रिश्तेदारों को फ़्लैट दिलाने वाले महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री को जांच से ही निकाल दिया गया !…..फिर भी ….. भारत की जनता अपनी न्यायपालिका में बहुत भरोसा करती रही है ,..ऐसे सार्वजनिक मतभेदों से अस्थिरता उत्पन्न होती है ,………. बढ़ते भ्रष्टाचार से कोई नहीं बचा है …..एक अखंड सत्य यह भी है कि कमियां हम इंसानों के अन्दर हैं और हम इलाज अपनी चमड़ी से बाहर खोजते हैं !…………सत्य यह भी है कि हम महारुद्र का आवाहन करते हैं और प्रतीक्षा सदाशिव की करते हैं !…….वैसे सदाशिव मिल जाएँ तो उनकी अनंत परमकृपा होगी !…रूद्रदृष्टि तो सतत बनी ही है !……बहरहाल …

अब समय आ गया है कि हमारे न्यायतंत्र में पर्याप्त सुधार होने ही चाहिए !……..न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया में पर्याप्त पारदर्शिता होनी चाहिए !…..हमारे पूज्य प्रधानमंत्रीजी ने कई बार न्यायपालिका के लिए सार्थक संदेश दिया है ,….उनके स्पष्ट सुगम न्यायिक भाषा के प्रयोग के आवाहन पर कौन भारतीय पुलकित नहीं हुआ था !….यह भारत का महान सौभाग्य है कि आज हमें महान तपस्वी संत नेता मिला है ,…….चंद पक्के भारत द्रोहियों के कारण भारत अपनी उन्नति को ढो रहा है !…..अंधे अहंकार से ग्रसित क्रूरतम अज्ञानियों के मन में गजवा-ए-हिन्द का विचार जीवित है ,….हम भारतीय मुसलमानों से इसलिए भी मोहब्बत करते हैं कि कभी उन्होंने कितनी भयंकर परिस्थितियों में अपना धर्म छोड़ा होगा ,….आज उनको उसी धर्म के महापातक धंधेबाज धुरंधर निर्ममता से प्रयोग करने में जुटे हैं !……सत्य यही है कि भारतीयता को तोड़ने के प्रत्येक प्रयास पतन को प्राप्त होंगे !…..सामजिक अहंकारों को मिटाकर हमें उन्नत मानवता अपनाने का प्रयत्न करना चाहिए !……नीच राजनीतिक महत्वाकांक्षा हमें लड़ाने के प्रयत्न करती रहेगी ,…जयचंदों के अनेकों रूप हमें मिल सकते हैं ,…लेकिन हमें अपनी अखंड भारतीयता को बनाए रखना है ,……घिनौनी कांग्रेसी कुत्सितता संक्षिप्त गृहयुद्ध भी करा सकती है ,…..यह भी हमारे लिए अंततः उन्नतिकारक होगा !…….हमारी अनेकों समस्याएं हैं ,…सबका मूल कारण अत्यधिक जनसँख्या है !………हमें तुरंत बहुविवाह पर प्रतिबन्ध और पर्याप्त कठोर जनसँख्या नियंत्रक कानून की महान आवश्यकता भी है !………

……विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका के अपने अपने संवैधानिक अधिकार हैं !…..तीनों को मिलकर अपने देश की भरसक सेवा करनी चाहिए !…….न्यायाधीशों की निष्पक्षता सर्वाधिक महत्वपूर्ण है !……निष्पक्षता धर्म दर्शन से ही आ सकती है !…………..हमारे न्यायाधीशों को महान भारतीय न्यायदर्शन का साधनापूर्वक गहन अध्ययन करना चाहिए ,…अभी आत्मवेत्ताओं की कमी हो सकती है ,..परन्तु …..कम से कम उच्च न्यायाधीशों के लिए पूर्ण निष्पक्ष सर्वदर्शी भारतीय न्यायदर्शन का पर्याप्त बोध आवश्यक होना चाहिए !…….न्यायदर्शन के विवेकप्रकाश में हमारे संविधान की आँखें पूर्ण निष्पक्ष न्याय करने में समर्थ होंगी !……..तब सोहराबुद्दीन जैसे पतित देशद्रोही अमानवीय आतंकियों के लिए रोने वाले हमें नहीं मिलेंगे !………

अंततः ,….हम अपने संविधान संरक्षक राष्ट्रप्रमुख आदरणीय पूज्यनीय महामहिम महोदय ,……पूज्य प्रधानमंत्रीजी और समस्त श्रेष्ठ सरकार से सादर प्रार्थना करते हैं कि आप राष्ट्रहित में हमारी सम्मानीय न्यायपालिका को कलंकमुक्त करने के सार्थक प्रयास करें !………हम अपनी माननीय न्यायपालिका से मानवता के हित में अहंकारहीन आत्मशुद्धि के लिए सार्थक प्रयत्न करने की सादर प्रार्थना भी करते हैं !……..हमारा अस्तित्व एकांगी नहीं है ,…वाम और दक्षिण हमारे दोनों किनारे हो सकते हैं ,…हमारे दो पहलू हो सकते हैं ,….हम क्रियाशील हैं ,…क्रियाशीलता दो के बिना असंभव है !…..दोनों में सहज समन्वय मानवता की आवश्यकता है ,…एक साथ दोनों पैर उछालने से चोट लगने की संभावना भी बन सकती है !….एक महान नेतृत्व को अपना दायित्व पूरा करने देना चाहिए !….आत्मा परमात्मा के नाम पर स्वार्थसाधन रुकना चाहिए !…….सामान्य भोगी मानव आत्मा को नहीं जानता है !…कभी उसकी आवाज आई भी तो अज्ञानवश अनसुना कर देता है !……आत्मा की आवाज सदैव सच्ची होती है ,..बशर्ते हम इसे सुन कब पाते हैं ,…कितना सुन पाते हैं ,..और अपने कर्मों में कितना अभिव्यक्त कर पाते हैं !……महानतम भावनाएं प्रत्येक मानवीय महापरिवर्तन की नींव बनती हैं !…..अज्ञानी मानवता भी इससे संपन्न है ,….लेकिन प्रगतिशील नियति के निश्चित नियमों से उनका उभार अक्सर महानपीड़ा से ही उत्पन्न होता है ,…देवकी की पीड़ा कौन समझ सकता है ,….कौशल्या की पीड़ा कैकेयी की कुंठा से अत्यधिक महान थी !….भागवत नियति में पीड़ा का भी उत्तम प्रयोग होता है !……..मानवता में व्याप्त सनातन भगवत्ता पवित्र भावना का यथायोग्य पालन संवर्धन करती है ,…तूफानों से रक्षा करती है !…. भगवत्ता प्रत्येक सद्भावना का मूल होती है !…….भगवत्ता को पूर्णतः जान समझ पाना हमसे अत्यधिक दूर है ,…लेकिन भगवत्ता हमसे दूर नहीं है !…..हम यदि इसे सच्चे दिल से चाहें और चाहते ही जाएँ तो ही पा सकते हैं ,…इसके नियम सुनिश्चित हैं !………सृजन पालन और संहार इसके सुनिश्चित अंग हैं !……खण्ड-पाखण्ड हममें से कोई भी पा कर सकता है लेकिन वास्तव में वैदिक धर्मधारी ही इसे पूर्णतः प्राप्त कर सकते हैं ,……महर्षि पतंजलि का अष्टांग योग ही यथार्थ भगवत्ता को सिद्ध कर सकता है !…. अनुपम कबीर, महान गुरु गोरखनाथ और भगवान् बुद्ध की अपनी महानता है ,..कृष्ण की महालीला अद्भुत है !……अब वह हो सकता है जो अब तक न हुआ हो !…..वैसे नित्य नवीनता भगवत्ता का ही अंग है !……….भारत समेत पूरा संसार महानकर्मयोगी स्वामी रामदेवजी और उनके सुयोग्य सखाओं द्वारा स्थापित परमपूज्य पतंजलि संस्थान की तरफ देख रहा है !…..साधकों से संसार ने सदैव महानतम अपेक्षाएं की हैं !…..सच्चे साधकों ने सदैव मानवता का उद्धार किया है !….आज हमारी मूर्ख मानवता निःसंदेह महान हीन स्थिति में है ,……अब हमें दैवीय चमत्कार अवतार ही चाहिए ,…ठोस सच्चे दृढ़ लचीले साधक में दैवीय अवतरण सहज है !……..मानवता को मलिनता से उबारने वाले दैवीय अस्तित्व का प्रादुर्भाव अत्यंत आवश्यक है !…..व्याकुल मानवता पुनः पुनः सादर प्रतीक्षारत है !…..तब तक हमें शुद्ध मन से ज्ञात सत्य न्याय के अनुसार यथासंभव मिलकर चलते रहना चाहिए !……….अंधी कट्टरताओं को तोड़ते रहना मानवता का ज्ञात धर्म है !…..अहंकारपूर्ण अंधविरोध अन्याय है !…….अपनी मलिन महत्वाकांक्षा से चिपकना अन्याय है !……राष्ट्रहित की तिलांजलि अन्याय है !…….मूर्खता को बढ़ाना अन्याय है !……आज संसार का बड़ा भाग अन्याय में ही लिप्त है ,…..हम अपने आदरणीय नेताओं और न्यायाधीशों से न्यायिक मर्यादा बचाने की पुनः प्रार्थना करते हैं !…….अधर्मी साजिशों से देश को बचाए रखना सबकी जिम्मेदारी है !..

….मरना हम सबको है ,..कौन कैसे मरेगा !!…….वास्तव में हमारा अहंकार ही तय करता है !……..आत्मा अमर थी ,…अमर है ,…और अमर ही रहेगी !…..पुनर्जन्म के विषय में प्रेम और घृणा ही मुख्य नियम है ,…मानसिक संरचना का किसी योनि स्थान जाति परिस्थिति से विशेष प्रेम या अतिशय घृणा ही पुनःजन्म का मुख्य माध्यम बनती है !……आत्मावान मानवता को अपनी बुराइयां स्वयं हटानी चाहिए ,….कोई इसके लिए प्रयत्न कर रहा है तो हमें उसका आभारी होना चाहिए !…..हम सम्पूर्ण अस्तित्व के हार्दिक आभारी हैं !…..मूलतः हम सब मित्र ही हैं !……….ॐ शान्ति !…….भारत माता की जय !!…….वन्देमातरम !!!

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