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धीरज रखो तनिक हे वीर हृदय |

युवामंच
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सभी सम्मानीय विद्वजनों को गोविन्द भारतवंशी का प्रथम नमस्कार| इस मंच पर कभी कभार आ जाता हूँ ,पढ़ते पढ़ते अपनी रचनाओं को प्रकाशित करने का दिल करने लगा है |  शुरुआत करता हूँ स्वामी विवेकानंद जी की कविता से जिसका काव्यानुवाद सुमित्रानंदन पन्त जी ने किया है ..


धीरज रखो तनिक हे वीर ह्रदय !
भले ही तुम्हारा सूर्य बादलों से ढक जाय,
आकाश उदास दिखाई दे ,
फिर भी धैर्य धरो कुछ हे वीर ह्रदय ,
तुम्हारी विजय अवश्यम्भावी है |

शीत के पहले ही ग्रीष्म आ गया ,
लहर का दबाव ही उसे उभारता है
धुप छाँव का खेल चलने दो
और अटल रहो ,वीर बनो |

जीवन में कर्त्तव्य कठोर है ,
सुखों के पंख लग गए हैं ,
मंजिल दूर, धुंधली सी झिलमिलाती है
फिर भी अन्धकार को चीरते हुए बढ़ जाओ ,
अपनी पूरी शक्ति और सामर्थ्य के साथ |

कोई कृति खो नहीं सकती और
कोई संघर्ष व्यर्थ नहीं जायेगा ,
भले ही आशाएं क्षीण हो जाय
और शक्तिया जबाब दे दें |

हे वीरात्मन ,तुम्हारे उत्तराधिकारी
अवश्य जन्मेंगे
और कोई सत्कर्म निष्फल न होगा |

यद्यपि भले और ज्ञानवान कम ही मिलेंगे ,
किन्तु ,जीवन की बागडोर उन्हीके हाथों में होगी ,
यह भीड़ सही बातें देर से समझती है ,
तो भी चिंता न करो ,मार्ग-प्रदर्शन करते जाओ |

तुम्हारा साथ वे देंगे ,जो दूरदर्शी हैं ,
तुम्हारे साथ शक्तिओं का स्वामी है ,
आशीषों की वर्षा होगी तुम पर ,
ओ महात्मन ,

तुम सर्वमंगल हो |

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